Sunday, January 1, 2012

इरादे कर बुलंद


           इरादे कर बुलंद अब रहना शुरू करती तो अच्छा था.
तू सहना छोड़ कर कहना शुरू करती तो अच्छा था.
 
     सदा औरों को खुश रखना बहुत ही खूब है लेकिन
खुशी थोड़ी तू अपने को भी दे पाती तो अच्छा था.
 
     दुखों को मानकर किस्मत हार कर रहने से क्या होगा
तू आँसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था.
 
     ये पीला रंग, लब सूखे  सदा चेहरे पे मायूसी
तू अपनी एक नयी सूरत बना लेती  तो अच्छा था.
 
     तेरी आँखों में आँसू हैं तेरे सीने में हैं  शोले
तू इन शोलों में अपने गम जला  लेती तो अच्छा था.
 
     है सर पर बोझ जुल्मों का तेरी आँखे सदा नीची
कभी तो आँखे उठा तेवर दिखा देती तो अच्छा था.
 
     तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आँचल का इक परचम बना लेती तो अच्छा था.*
(*मशहूर शायर मजाज की ग़ज़ल की पंक्ति)
-कमला भसीन  

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